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वर्णमाला (षष्ठम्)

                                                                                      वर्णमाला

👉परिचयः

सभी वर्गों का उच्चारण मुख से होता है, जिसमें-कण्ठ, जिह्वा, तालु, मूर्धा, दन्त, ओष्ठ एवं नासिका का योगदान होता है। इन उच्चारण-स्थानों से पूर्व ‘वर्ण’ के विषय में आवश्यक ज्ञान अपेक्षित है।



👉वर्णाः

वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके टुकड़े न हो सकें। जैसे- क्, ख, ग आदि। इनके टुकड़े नहीं किये जा सकते। इन्हें अक्षर भी कहते है।


वर्ण-भेदाः
संस्कृत में वर्ण दो प्रकार के माने गये हैं।
        (क) स्वर वर्ण, इन्हें अच् भी कहते हैं।
        (ख) व्यञ्जन वर्ण, इन्हें हल भी कहा जाता है।

स्वराः
ह्रस्व स्वराः
जिन स्वरों के उच्चारण में केवल एक मात्रा का समय लगे अर्थात कम से कम समय लगे, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। जैसे–अ, इ, उ, ऋ, लू। इनकी संख्या 5 है। इनमें कोई अन्य स्वर या वर्ण मिश्रित नहीं होता, इन्हीं को मूल स्वर भी कहते हैं।


दीर्घ स्वराः
जिन स्वरों के उच्चारण काल में ह्रस्व स्वरों की अपेक्षा दोगुना समय लगे अर्थात दो मात्राओं को समय लगे, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं। 
        जैसे—आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ओ, ऐ, औ। इनकी संख्या 8 है।

प्लुत स्वराः
जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है, वे प्लुत स्वर कहलाते हैं। इनमें तीन मात्राओं का उच्चारण काल होता है। इनके उच्चारण काल में दो मात्राओं से अधिक समय लगता है। प्लुत का ज्ञान कराने के लिए ३ अंक स्वर के आगे लगाते हैं। इसका प्रयोग अधिकतर वैदिक संस्कृत में होता है। जैसे–अ...३, इ... ३, उ... ३, ऋ... ३, लृ... ३, ए... ३, ओ... ३, ऐ... ३, औ... ३।

                                            व्यञ्जनानि
👉परिभाषा-
व्यञ्जन उन्हें कहते हैं, जो बिना स्वर की सहायता के उच्चारित नहीं किये जाते हैं। व्यञ्जन का उच्चारण काल अर्ध मात्रा काल है। जिस व्यञ्जन में स्वर का योग नहीं होता उसमें हलन्त का चिह्न लगाते हैं।


✍व्यञ्जन-भेदाः
उच्चारण की भिन्नता के आधार पर व्यञ्जनों को निम्न तीन भागों में विभाजित किया गया है-
            (1) स्पर्श
            (2) अन्त:स्थ
            (3) ऊष्म।

(1) स्पर्श व्यञ्जनानि-
‘कादयो मावसाना: स्पर्शा:’ अर्थात जिन व्यञ्जनों का उच्चारण करने में जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श करती है और वायु कुछ क्षण के लिए रुककर झटके से निकलती है, वे स्पर्श संज्ञक व्यञ्जन कहलाते हैं। क् से म्। पर्यन्त व्यञ्जन स्पर्श संज्ञक हैं। इनकी संख्या 25 है, जो निम्न पाँच वर्गों में विभक्त हैं-
                    (1)    कवर्ग    -    क्    ख्    ग्    घ्    ङ्            -        कण्ठ्य
                    (2)    चवर्ग    -    च्    छ    ज    झ    ञ             -        तालव्य
                    (3)    टवर्ग    -    ट्    ठ्    ड्    ढ्    ण्               -        मूर्धन्य
                    (4)    तवर्ग    -    त्    थ्    द्    ध्    न्                -        दन्त्य
                    (5)    पवर्ग    -    प्    फ्    ब्    भ्    म्              -        ओष्ठ्य


(2) अन्तःस्थ व्यञ्जनानि-
जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को कुछ रोककर अल्प शक्ति के साथ किया जाता है, वे अन्तःस्थ व्यञ्जन कहलाते हैं। ‘यणोऽन्त:स्थाः’ 
    अर्थात्- यण् य्, व्, र, ल्             -              अन्त:स्थ व्यञ्जन हैं। 
              इनकी संख्या चार है।

(3) ऊष्म व्यञ्जनानि-
जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को धीरे-धीरे रोककर रगड़ के साथ निकालकर किया जाता है, वे ऊष्म व्यञ्जन कहे जाते हैं। ‘शल ऊष्माणः’ 
    अर्थात्- शल   श्, ष्, स्, ह्         -             ऊष्म संज्ञक व्यञ्जन हैं। 
            इनकी संख्या भी चार है। 


संयुक्त व्यञ्जनानि
इनके अतिरिक्त तीन व्यञ्जन और हैं, जिन्हें संयुक्त व्यञ्जन कहा जाता है, क्योंकि ये दो-दो व्यञ्जनों के मूल से बनते हैं। 
        जैसे—        (1) क् + ष = क्ष्
                          (2) त् + र् = त्र
                          (3) ज् + ञ् = ज्ञ


अयोगवाह

अनुस्वार  अं

अनुस्वार को म् की जगह प्रयोग मे लाया जाता है। 

        जैसे अहं या अहम्। 

विसर्ग अः

    विसर्ग का उच्चारण कैसे करें - विसर्ग (अः) उससे पहले अक्षर की मात्रा की तरह बोला जाता है।        रामः शब्द मे विसर्ग म के बाद आता है और म शब्द 'म्' और 'अ' की मात्रा से  मिलकर बना है।        इसलिए "ह" के बाद "अ" की मात्रा लगाएँ। तो 'रामः' का उच्चारण 'रामह' होगा।


हलन्त
    जब भी हलन्त किसी व्यञ्जन के नीचे लगता है तो उस व्यञ्जन के उच्चारण की सीमा आधी हो जाती     है। जैसे-
        पुस्तकम्, रामम्
मात्रा
स्वरों की मात्राओं को व्यञ्जनों पर उपयोग में ली जाती हैं। 

 स्वर

 अ

आ 

इ 

ई 

उ 

ऊ 

ऋ 

ऋृ 

लृ 

ए 

ऐ 

ओ 

औ 

 मात्रा

 x

ा 

ि 

ी 

ु 

ू 

ृ 

ृृ 

 x

े 

ै 

ो 

ौ 

 उदाहरण

 क

का

कि 

की 

कु 

कू 

कृ 

कृृ 

 x

के 

कै 

को 

कौ 


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