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जननी तुल्यवत्सला

 पाठः - 5

जननी तुल्यवत्सला


पाठ प्रस्तावना

महाभारत में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो आज के युग में भी उपादेय हैं। महाभारत के वनपर्व से ली गई यह कथा न केवल मनुष्यों अपितु सभी जीवजंतुओं के प्रति समदृष्टि पर बल देती है। समाज में दुर्बल लोगों अथवा जीवों के प्रति भी माँ की ममता प्रगाढ़ होती है, यह इस पाठ का अभिप्रेत है।


जननी तुल्यवत्सला


कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्। अतः कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत। सः ऋषभः हलमूढ्वा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात। क्रुद्धः कृषीवलः तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृषः नोत्थितः।

भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्। सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्- अयि शुभे! किमेवं रोदिषि? उच्यताम् इति। सा च

विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिपः!।

अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!।।

भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। सः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुध पीडयति। सः कृच्छ्रेण भारमुद्वहति। इतरमिव धुरं वोढु सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न? इति प्रत्यवोचत्।

भद्रे! नूनम्। सहस्राध्विेफषु पुत्रोषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?

इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत् -

यदि पुत्रसहस्रं मे, सर्वत्र सममेव मे।

दीनस्य तु सतः शक्र! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा।।

बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्। तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः। सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव। तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव इति। सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्। स च तामेवमसान्त्वयत्- गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।

अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत। लोकानां पश्यताम् एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः। कृषकः हर्षातिरेवेफण कर्षणविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।

अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।

पुत्रो दीने तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत्।।


अनुवाद-


कोई किसान दो बैलों से खेत की जुताई कर रहा था। उन दो बैलों में से एक बैल शरीर से दुर्बल और तेजी से चलने में असमर्थ था। इसलिए किसान उस बैल को (जबरदस्ती) कष्ट देकर धकेल रहा था। वह बैल हल को उठाकर चलने में असमर्थ होकर खेत में गिर गया।

क्रोधित किसान ने उसे उठाने की बहुत कोशिश की फिर भी बैल नहीं उठ सका।जमीन पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर सब गायों की माता सुरभि का आँखों में आँसू आने लगे।

सुरभि का यह अवस्था देखकर इन्द्र ने उससे पूछा- “अरे शुभा! इस तरह क्यों रो रही हो?” और उसने कहा-

हमारा विनाश किसी इन्द्र को दिखाई नहीं देता है। मैं तु पुत्र का दुःख करती हूँ, हे इन्द्र! उससे (दुःख) रोती हूँ।

वह कमजोर है ऐसा जानते हुए भी किसान उसको अनेक बार पीड़ित कर रहा है। व कष्ट से भार उठाता है। दूसरों के समान धुरी (जुए) को ढोने में समर्थ नहीं है। यह आप देख रहे हैं ना? ऐसा उत्तर दिया।

हे कल्याणी निश्चित ही हजारों से अधिक पुत्र होते हुए भी तुम्हारा इसी में स्नेहाभिलाष क्यों है?

ऐसा इन्द्र के द्वारा पूछने पर सुरभि ने उत्तर दिया-

यदि मेरे हदार पुत्र हैं (वे सारे मेरे लिए) सब जगह समान ही हैं। हे इन्द्र! पीड़ित पुत्र होते हुए उस पर कृपा अधिक होती है।

सत्य है मेरी बहुत संतानें हैं, सत्य है मेरी बहुत संतानें हैं। तो भी मैं इस पुत्र में विशेषकर आत्मवेदना अनुभव करती हूँ। क्योंकि यह दूसरों से (अधिक) दुर्बल है। सभी संतानों में माँ समान ही प्यार रखती है। फिर भी कमजोर पुत्र पर माँ की कृपा कुछ ज्यादा ही होती है, ऐसा।

सुरभि की बात सुनकर अथ्यधिक आश्चर्यचकित इन्द्र का भी ह्रदय पसीज गया। और उसने उसको (सुरभि) दिलासा दिया- जाओ पुत्री! सब कल्याण हो।

जल्दी ही तेज हवा से और बादलों की गर्जना से वर्षा हुई। देखते ही देखते सब सगह जल से भर गई।

अत्यधिक खुशी से (जोतने वाला किसान) जोतने से विमुख होकर अर्थात् जोतना छोड़कर किसान दोनों बैलों को लेकर घर आ गया।

सभी बच्चों पर माँ एक जैसा प्यार करती है। लेकिन कमजोर पुत्र पर तो व माँ कृपावाली और दया से भरी होती है।


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