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प्रथमः पाठः

शुचिपर्यावरणम्



प्रश्न 1.    एकपदेन उत्तरं लिखत-

(क) अत्र जीवितं कीदृशं जातम्?
            उत्तरम्-        दुर्वहमत्र


(ख) अनिशं महानगरमध्ये किं प्रचलति?
            
उत्तरम्-        कालायासचक्रम्


(ग) कुत्सितवस्तुमिश्रितं किमस्ति?
            
उत्तरम्-        भक्ष्यम्


(घ) अहं कस्मै जीवनं कामये?
            
उत्तरम्-        मानवाय


(ङ) केषां माला रमणीया?
            उत्तरम्-        ललितलतानां


प्रश्न 2.    अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

(क) कविः किमर्थं प्रकृतेः शरणम् इच्छति?
            
उत्तरम्-    कविः सुजीवनार्थं प्रकृतेः शरणम् इच्छति।

 

(ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते?
            उत्तरम्-    यानानां हि अनन्ताः पङ्कतयः महानगरेषु सन्ति अतः तत्र संसरणं कठिनं वर्तते।


(ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितम् अस्ति?
            
उत्तरम्-    अस्माकं पर्यावरणे वायुमण्डलं जलम्, भक्ष्यम्, धरातलं च सर्व दुषितम् अस्ति।


(घ) कविः कुत्र सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति?
            
उत्तरम्-    कविः एकान्ते कान्तारे सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति।


(ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम्?
            
उत्तरम्-    स्वस्थजीवनाय खगकुलकलरव गुञ्जिते-कुसुमावलि समीरचालिते वातावरणे भ्रमणीयम्।


(च) अन्तिमे पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति?
            
उत्तरम्-    अन्तिमे पद्यांशे कवेः मानवेभ्यः शान्तिप्रिय-जीवनस्य कामना अस्ति।


प्रश्न 3.    सन्धिं / सन्धिविच्छेदं कुरुत-

(क) प्रकृतिः + _________ = प्रकृतिरेव                                          उत्तरम्-        एव


(ख) स्यात् + _________ + _________ = स्यान्नैव                        उत्तरम्-        , एव


(ग) _________ + अनन्ता = ह्यनन्ताः                                           उत्तरम्-        हि


(घ) बहिः + अन्तः + जगति = _________                                               उत्तरम्-   

   बहिरन्तर्जगति


(ङ) _________ + नगरात् = अस्मान्नगरात्                                    उत्तरम्-      अस्मात्


(च) सम् + चरणम् = _________                                                 उत्तरम्-      पञ्चरणम्


(छ) धूमम् + मुञ्चति = _________                                                         उत्तरम्-      धूमंमुञ्चति


प्रश्न 4.    अधोलिखितानाम् अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत-

                    (भृशम्, यत्र, तत्र, अत्र, अपि, एव, सदा, बहिः)

(क) इदानीं वायुमण्डलं ___________ प्रदूषितमस्ति।                       उत्तरम्-    भृशम्


(ख) ___________ जीवन दुर्वहम् अस्ति।                                       उत्तरम्-    अत्र 


(ग) प्राकृतिक वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् _________ लाभदायकं भवति।         उत्तरम्-     अपि


(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् ___________ प्रकृतेः आराधना।               उत्तरम्-    एव


(ङ) ___________ समयस्य सदुपयोगः करणीयः।                                      उत्तरम्-    सदा


(च) भूकम्पित-समये ___________ गमनमेव उचितं भवति।              उत्तरम्-    बहिः


(छ) ___________ हरीतिमा ___________ शुचि पर्यावरणम्।                 उत्तरम्-    यत्र, तत्र


प्रश्न 5 (अ).    अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत-

(क) सलिलम्                             _________                    (क) जलम्

(ख) आम्रम्                               _________                    (ख) रसालम्

(ग) वनम्                                 _________                    (ग) कान्तारम्

(घ) शरीरम्                              _________                    (घ) तनुः

(ङ) कुटिलम्                             _________                    (ङ) वक्रम्

(च) पाषाणः                             _________                    (च) प्रस्तर:


प्रश्न 5 (आ). अधोलिखितपदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत- 

(क) सुकरम्                               ___________                (क) दुष्करम्

(ख) दूषितम्                             ___________                (ख) निर्मलं

(ग) गृह्णन्ती                              ___________                (ग) मुञ्चति

(घ) निर्मलम्                             ___________                (घ) दुषितं

(ङ) दानवाय                             ___________                (ङ) मानवाय

(च) सान्ताः                              ___________                (च) ध्वानम्


प्रश्न 6.    उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि समासनाम च लिखत-

यथा-

क्रम

विग्रह

समस्तपदं

समासनाम

(क)

मलेन सहितम्

समलम्

 

(ख)

हरिताः च ये तरवः (तेषां)

हरिततरूणाम्

कर्मधारय

(ग)

ललिताः च याः लताः (तासाम्)

ललितलतानाम्

कर्मधारय

(घ)

नवा मालिका

नवमालिका

कर्मधारय

(ड़)

धृत् सुखसन्देशः येन (तम्)

धृतसुखसन्देशम्

बहुब्रीहि

(च)

कज्जल इव मलिनम्

कज्जलमलिनम्

कर्मधारय

(छ)

दुर्दान्तैः दशनैः

दुर्दान्तैर्दशनै

कर्मधारय

 

प्रश्न 7.    रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

(क) शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूम मुञ्चति।
            उत्तरम्-    कीदृशम्


(ख) उद्याने पक्षिणां कलरवं चेतः प्रसादयति।
            उत्तरम्-    केषाम्


(ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति।
            उत्तरम्-    के


(घ) महानगरेषु वाहनानाम् अनन्ता पङ्क्तयः धावन्ति।
            उत्तरम्-    केषु / कुत्र


(ङ) प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविक सुखं विद्यते।
            उत्तरम्-    कस्याः

योग्यताविस्तारः

यह पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इसमें कवि ने महानगरों की यांत्रिक-बहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तन-मन का शोषक है, जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं। कवि महानगरीय जीवन से दूर, नदी-निर्झर, वृक्षसमूह, लताकुञ्ज एवं पक्षियों से गुञ्जित वनप्रदेशों की ओर चलने की अभिलाषा व्यक्त करता है।

समास-समसनं समासः
समास का शाब्दिक अर्थ होता है-संक्षेप। दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से जो तीसरा नया और संक्षिप्त रूप बनता है वह समास कहलाता है। समास के मुख्यतः चार भेद हैं-

1.   अव्ययीभाव

2.   तत्पुरुष

3.   बहुव्रीहि

4.   द्वन्द्व


1. अव्ययीभाव- इस समास में पहला पद अव्यय होता है और वही प्रधान होता है और समस्तपद अव्यय बन जाता है।
            यथा-निर्मक्षिकम् मक्षिकाणाम् अभाव:

यहाँ प्रथमपद ‘निर्’ है और द्वितीयपद मक्षिकम् है। यहाँ मक्षिका की प्रधानता न होकर मक्षिका का अभाव प्रधान है, अतः यहाँ अव्ययीभाव समास है। कुछ अन्य उदाहरण देखें-

·         उपग्रामम् – ग्रामस्य सपीपे – (समीपता की प्रधानता)

·         निर्जनम् – जनानाम् अभाव: – (अभाव की प्रधानता)

·         अनुरथम् – रथस्य पश्चात् – (पश्चात् की प्रधानता)

·         प्रतिगृहम् – गृहं गृहं प्रतिः – (प्रत्येक की प्रधानता)

·         यथाशक्ति – शक्तिम् अनतिक्रम्य – (सीमा की प्रधानता)

·         सचक्रम् – सक्रेण सहितम्: – (सहित की प्रधानता)


2. तत्पुरुष- ‘प्रायेण उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः’ इस समास में प्राय: उत्तरपद की प्रधानता होती है और पूर्वपद उत्तरपद के विशेषण का कार्य करता है। समस्तपद में पूर्वपद की विभक्ति का लोप हो जाता है।

यथा- राजपुरुषः अर्थात् राजा का पुरुष। यहाँ राजा की प्रधानता न होकर पुरुष की प्रधानता है, और राजा शब्द पुरुष के विशेषण का कार्य करता है।

·         ग्रामगतः – ग्राम गतः।

·         शरणागात – शरणम् आगतः।

·         देशभक्तः – देशस्य भक्तः।

·         सिंहभीतः – सिंहात् भीतः।

·         भयापन्नः – भयम् आपन्नः।

·         हरित्रातः – हरिणा त्रातः।


तत्पुरुष समास के दो भेद हैं-कर्मधारय और द्विगु।
1. कर्मधारय- इस समास में एक पद विशेष्य तथा दूसरा पद पहले पद का विशेषण होता है। विशेषण-विशेष्य भाव के अतिरिक्त उपमान-उपमेय भाव भी कर्मधारय समास का लक्षण है।
यथा-

·         पीताम्बरम् – पीतं च तत् अम्बरम्।

·         महापुरुषः – महान् च असौ पुरुषः।

·         कज्जलमलिनम् – कज्जलम् इव मलिनम्।

·         नीलकमलम् – नीलं च तत् कमलम्।

·         मीननयनम् – मीन इव नयनम्।

·         मुखकमलम् – कमलम् इव मुखम्।


2. द्विगु- ‘संख्यापूर्वी द्विगुः’
इस समास में पहला पद संख्यावाची होता है और समाहार (एकत्रीकरण या समूह) अर्थ की प्रधानता होती है।
यथा- त्रिभुजम्-त्रयाणां भुजानां समाहारः। इसमें पूर्ववद ‘त्रि’ संख्यावाची है।

·         पंचपात्रम् – पंचाना पात्राणां समाहारः।

·         पंचवटी – पंचानां वटानां समाहारः।

·         सप्तर्षिः – सप्तानां ऋषीणां समाहारः।

·         चतुर्युगम् – चतुर्णा युगानां समाहारः।


3. बहुब्रीहि- ‘अन्यपदप्रधानः बहुबीहिः’
इस समास में पूर्व तथा उत्तर पदों की प्रधानता न होकर किसी अन्य पद की प्रधानता होती है।
यथा-

·         पीताम्बरः – पीतम् अम्बरम् यस्य सः (विष्णुः)। यहाँ न तो पीतम् शब्द की प्रधानता है और न अम्बरम् शब्द की अपितु पीताम्बरधारी किसी अन्य व्यक्ति (विष्णु) की प्रधानता है।

·         नीलकण्ठः – नीलः कण्ठः यस्य सः (शिवः)।

·         दशाननः – दश आननानि यस्य सः (रावण:)।

·         अनेककोटिसारः – अनेककोटिः सारः (धनेम्) यस्य सः।

·         विगलितसमृद्धिम् – विगलिता समृद्धिः यस्य तम् (पुरुषम्)।

·         प्रक्षालितपादम् – प्रक्षालितौ पादौ यस्य तम् (जनम्)।


4. द्वन्द्व- ‘उभयपदार्थप्रधान: द्वन्द्वः’
इस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों की समान रूप से प्रधानता होती है। पदों के बीच में ‘च’ का प्रयोग विग्रह में होता है।
यथा-

·         रामलक्ष्मणौ – रामश्च लक्ष्मणश्च।

·         पतरौ – माता च पिता च।

·         धर्मार्थकाममोक्षाः – धर्मश्च, अर्थश्च, कामश्च, मोक्षश्च।

·         वसन्तग्रीष्मशिशिराः – वसन्तश्च ग्रीष्मश्च शिशिरश्च।

कविपरिचय- प्रो० हरिदत्त शर्मा इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में संस्कृत के आचार्य रहे हैं। इनके कई संस्कृत काव्य प्रकाशित हो चुके हैं। जैसे-गीतकंदलिका, त्रिपथगा, उत्कलिका, बालगीताली, आक्रन्दनम्, लसल्लतिका इत्यादि। इनकी रचनाओं में समाज की विसंगतियों के प्रति आक्रोश तथा स्वस्थ वातावरण के प्रति दिशानिर्देश के भाव प्राप्त होते हैं।


भावविस्तारः

पृथिवी, जल, तेजो वायुराकाशश्चेति पञ्चमहाभूतानि प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि। एतैः तत्त्वैरेव पर्यावरणस्य रचना भवति। आवियते रेतः समन्तात् लोकोऽनेनेति पर्यावरणम्। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणमस्मभ्यं सर्वविधजीवनसुखं ददाति। अस्माभिः सदैव या प्रयतितव्यं यथा जलं स्थलं गगनञ्च निर्मलं स्यात्। पर्यावरणसम्बद्धाः केचन श्लोकाः अधोलिखिताः सन्ति-

    यथा-

    पृथिवीं परितो व्याप्य, तामाच्छाद्य स्थितं च चत्।
    जगदाधाररूपेण, पर्यावरणमुच्यते।।

दूषणविषये-

सृष्टौ स्थितौ विनाशे च नृविज्ञैर्बहुनाशकम्।
पञ्चतत्वविरुद्ध यत्साधितं तत्प्रदूषणम्।।

युप्रदूषणविषये-

प्रक्षिप्तो वाहनधूमः कृष्णः बह्वपकारकः।
दुष्टैरसायनयुक्तो घातक: श्वासरुग्वहः।।

नप्रदूषणविषये-

यन्त्रशाला परित्यक्तैर्नगरेदूषितद्रवैः।
नदीनदी समुद्राश्च प्रक्षिप्तैर्दूषणं गताः।।

दूषण निवारणाय संरक्षणाय च-

शोधनं रोपणं रक्षावर्धनं वायुवारिणः।
वनानां वन्यवस्तूनां भूमेः संरक्षणं वरम्।।
एते श्लोकाः पर्यावरणकाव्यात् संकलिताः सन्ति।

सम-तद्भव- शब्दानामध्ययनम्-
अधोलिखितानां तत्समशब्दानां तदुद्भूतानां च तद्भवशब्दानां परिचयः करणीय:

    • तत्सम – तद्भव
    • प्रस्तर – पत्थर
    • वाष्प – भाप
    • दुर्वह – दूभर
    • वक्र – बाँका
    • कज्जल – काजल
    • चाकचिक्य – चकाचक, चकाचौंध
    • धूमः – धुआँ
    • शतम् – सौ (100)
    • बहिः – बाहर

 

---------- इति ----------

 


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