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ईश-वन्दना (VIII)

प्रथमः पाठः 

                                                    ईश-वन्दना


श्लोक-1

मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिं ।

यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥


अनुवादम्-

अर्थात् जिनकी कृपा से गूंगे भी बोलने लगते हैं, लंगड़े पहाड़ पार कर जाते हैं, ऐसे परम आनंद माधव की मैं वन्दना करता हूँ।


श्लोक-2

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । 

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥


अनुवादम्-

जिसने ज्ञानांजनरुप शलाका से, अज्ञानरुपी अंधकार से अंध हुए लोगों की आँखें खोलीं, उन गुरु को नमस्कार।


श्लोक-3

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । 

तत् पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।​।


अनुवादम्- 

उस महान् गुरु को अभिवादन, जिसने उस अवस्था का साक्षात्कार करना संभव किया जो पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है, जो सभी जीवित और मृत्यु को प्राप्त हुए में भी स्थित है|


श्लोक-4

नमामि ईश्वरं प्रातः, नमामि जनकं तथा। 

नमामि जननीं पूज्यां, नमामि शिक्षकान् तथा।।


अनुवादम्-

अर्थात् मैं प्रातः ईश्वर को प्रणाम करता हूँ। उसी प्रकार से पिता को प्रणाम करता हूँ। पूजनीय माताजी को प्रणाम करता हूँ और फिर अपने शिक्षकों को भी प्रणाम करता हूँ।


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                                प्रश्नोत्तराणि


प्र.1. 😂प्रश्नानां उत्तराणि लिखत-

(क) कम् गिरिं लंघयते?

        उत्तरम्-    पंगुं गिरिं लंघयते।

 

(ख) कस्य कृपया मूकः वाचालः भवति?

        उत्तरम्-    माधवस्य कृपया मूकः वाचालः भवति।


(ग) केन चक्षुः उन्मीलितम्?

        उत्तरम्-    गुरुणा चक्षुः उन्मीलितम्।


(घ) प्रातः कः कः नमनयोग्यः?

        उत्तरम्-    प्रातः ईश्वरः जनकः जननी शिक्षकः नमनयोग्यः।


प्र.2. 💧रिक्त स्थानानि पूरयत-

(क) यत्कृपा तमहं न्दे परमानन्द माधवम्

(ख) अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञजनशलाकया।

(ग) अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।

(घ) नमामि जननीं पूज्यां तमहं तथा।

(ड़) नमामि ईश्वरं प्रातः।


प्र.3. 👉एतेषां शब्दानां विभक्तिः वचनम् लिखत-

        (क) गिरिम्                    द्वितीया                    एकवचनम्

        (ख) येन                        तृतीया                      एकवचनम्

        (ग) तस्मै                        तृतीया                     बहुवचनम्

        (घ) गुरवे                        चतुर्थी                      बहुवचनम्

        (ड़) शलाकया                चतुर्थी                       एकवचनम्

        (च) शिक्षकान्                द्वितीया                     बहुवचनम्


प्र.4. 💨नमः शब्दस्य योगे चतुर्थी-विभक्तिः भवति अतः अधोलिखितानां शब्दानाम् शब्दानां अग्रे चतुर्थी              विभक्तेः एकवचनस्य रूपं लिखत। यथा-

    गुरुः            गुरवे             सः             तस्मै

(क) रामः                    रामाय                                (ड़) तत्                      तस्मै

(ख) गणेशः                गणेशाय                               (च) सा                       तस्यै

(ग) सीता                   सीतायै                                  (छ) नदी                    नद्यै

(घ) देवी                    देव्यै                                      (ज) फलम्                  फलाय


प्र.5. 😀सम्मेलनं कुरुत-

(क) यत्कृपा तमहं वन्दे तस्मैः श्रीगुरवे नमः

(ख) अज्ञानतिमिरान्धस्य व्याप्तं येन चराचरम्

(ग) नमामि जननीं पूज्यां परमानन्द-सागरम्

(घ) चक्षुरुन्मीलितं येन ज्ञानाञ्जन शलाकया

(ड़) अखण्डमण्डलाकारं नमामि शिक्षकान् तथा


---------- इति ----------

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