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IX-5 (Ans)

पञ्चमः पाठः

सूक्तिमौक्तिकम्

 


प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत –

(क) वित्ततः क्षीणः कीदृशः भवति?
उत्तरम्- अक्षीणः

(ख) कस्य प्रतिकूलानि कार्याणि परेषां न समाचरेत्?
उत्तरम्- आत्मनः

(ग) कुत्र दरिद्रता न भवेत्?
उत्तरम्- प्रियवाक्यप्रदाने

(घ) वृक्षाः स्वयं न खादन्ति?
उत्तरम्- फलानि

(ङ) का पुरा लघ्वी भवति?
उत्तरम्- सज्जनमैत्री

 

प्रश्न 2. अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –

(क) यत्नेन किं रक्षेत् वित्तं वृत्तं वा?
उत्तरम्- यत्नेन वृत्तं रक्षेत्।

(ख) अस्माभिः (किं न समाचरेत्) कीदृशम् आचरणं न कर्त्तव्यम्?
उत्तरम्- अस्माभिः आत्मनः प्रतिकूलम् आचरणं न कर्त्तव्यम्।

(ग) जन्तवः केन तुष्यन्ति?
उत्तरम्- जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति।

(घ) सज्जनानां मैत्री कीदृशी भवति?
उत्तरम्- सज्जनानां मैत्री पुरा लघ्वी पश्चात् च वृद्धिमती भवति।

(ङ) सरोवराणां हानिः कदा भवति?
उत्तरम्- सरोवराणां हानिः मरालैः सह विप्रयोगेन भवति।

 

प्रश्न 3. क’ स्तम्भे विशेषणानि ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्याणि वत्तानि, तानि यथोचित योजयत –

क’ स्तम्भः – ‘ख’ स्तम्भः
उत्तरम्-
क’ स्तम्भः                                       ‘ख’ स्तम्भः
विशेषणम्                                          विशेष्यः
(क) आस्वाद्यतोयाः                            3. नद्यः
(ख) गुणयुक्तः                                   4. दरिद्धः
(ग) दिनस्य पूर्वार्द्धभिन्ना                       1. खलानां मैत्री
(घ) दिनस्य पराद्धभिन्ना                         2. सज्जनानां मैत्री

 

प्रश्न 4. अधोलिखितयोः श्लोकद्वयोः आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत –

(क) आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण
लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम् ।।

(ख) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ।।
उत्तर:
भाव हिन्दी में –
(क) दुष्टों और सज्जनों की मित्रता में अंतर स्पष्ट करते हुए आचार्य भर्तृहरि कहते हैं कि जिस प्रकार छाया दिन में आरंभ में बड़ी होती है तथा धीरे-धीरे छोटी होती जाती है। उसी प्रकार दुष्टों की मित्रता पहले गहरी होती है और धीरे-धीरे कम होती जाती है। इसके विपरीत जिस प्रकार दोपहर में छाया छोटी होती है और धीरे-धीरे बढ़ती है, इसी प्रकार सज्जनों की मित्रता पहले कम तथा धीरे-धीरे दूसरों के गुण स्वभाव आदि समझकर बढ़ती है।

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भाव हिन्दी में –
(ख) मीठे वचन बोलने से सारे प्राणी प्रसन्न होते हैं, इसलिए हमें हमेशा मीठा ही बोलना चाहिए। मीठे वचन बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मीठे वचनों की कोई कमी नहीं है।

 

प्रश्न 5. अधोलिखितपदेभ्यः भिन्नप्राकृतिकं पदं चित्वा लिखत –

उत्तरम्-
(क) सर्वस्वम्
(ख) वचने
(ग) धनवताम्
(घ) परितः

 

प्रश्न 6. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्नवाक्यनिर्माणं कुरुत –

उत्तरम्-
(क) कस्मात् क्षीणः हतः भवति?
(ख) किं श्रुत्वा अवधार्यताम्?
(ग) के फलं न खादन्ति?
(घ) केषाम् मैत्री आरम्भगुर्वी भवति?

 

प्रश्न 7. अधोलिखितानि वाक्यानि लोट्लकारे परिवर्तयतयथा –

उत्तरम्-
(क) नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्ति।                             नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्तु।
(ख) सः सदैव प्रियवाक्यं वदति।                               सः सदैव प्रियवाक्यं वदतु।
(ग) त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचरसि।                    त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचर।
(घ) ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्ति।                                    ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्तु।
(ङ) अहम् परोपकाराय कार्य करोमि।                       अहं परोपकाराय कार्य करवाणि।

 

परियोजनाकार्यम्

(क) परोपकारविषयकं श्लोकद्वयम् अन्विष्य स्मृत्वा च कक्षायां सस्वर पठ।

(ख) नद्याः एक सुन्दरं चित्र निर्माय संकलय्य वा वर्णयत यत् तस्याः तीरे मनुष्याः पशवः खागाश्च निर्विघ्नं जलं पिबन्ति।
उत्तरम्-
(क) 1. परोपकाराय वहन्ति नद्यः परोपकाराय दुहन्ति गावः। परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकारार्थमिदं शरीरम्।।

2. श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुण्डलेन, दानेन पाणिनं तु कङ्कणेन। विभाति कायः करुणापराणा, परोपकारेण न चन्दनेन। (छात्र इन श्लोकों को याद करें तथा अध्यापक के सहयोग से इनका कक्षा में सस्वर पाठ करें।)


(ख) छात्र अध्यापक के सहयोग से नदी का चित्र बनाएँ तथा वर्णन करें कि उसके तट पर मनुष्य, पशु-पक्षी सब बिना कष्ट पानी पीते हैं।

 

 

---------- इति ----------


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