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शिशुलालनम्

 पाठः - 4 

शिशुलालनम्


पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ संस्कृतवाङ्मय के प्रसिद्ध नाटक ‘कुन्दमाला’ के पंचम अङक् से सम्पादित कर लिया गया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग हैं। इस नाटकांश में राम कुश और लव को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं किन्तु वे दोनों अतिशालीनतापूर्वक मना करते हैं। सिंहासनारूढ़ राम कुश और लव के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उन्हें अपनी गोद में बैठा लेते हैं और आनन्दित होते हैं। पाठ में शिशु स्नेह का अत्यन्त मनोहारी वर्णन किया गया है।


शिशुलालनम्

(सिंहासनस्थः रामः। ततः प्रविशतः विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गौ तापसौ कुशलवौ)

विदूषकः — इत इत आर्यौ!

कुशलवौ — (रामस्य समीपम् उपसृत्य प्रणम्य च) अपि कुशलं महाराजस्य?

रामः — युष्मद्दर्शनात् कुशलमिव। भवतोः किं वयमत्र कुशलप्रश्नस्य भाजनम्

एवन पुनरतिथिजनसमुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य। (परिष्वज्य) अहो हृदयग्राही स्पर्शः।

(आसनार्धमुपवेशयति)

उभौ — राजासनं खल्वेतत्न युक्तमध्यासितुम्।

रामः — सव्यवधानं न चारित्रलोपाय। तस्मादङ

कुशः — व्यवहितमध्यास्यतां सिंहासनम्।

(अटमुपवेशयति)

उभौ — (अनिच्छां नाटयतः) राजन्! अलमतिदाक्षिण्येन।

रामः —        अलमतिशालीनतया।

भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्

गुणमहतामपि लालनीय एव।

व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्

पशुपतिमस्तककेतकच्छदत्वम्।।

रामः — एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन पृच्छामिक्षत्रियकुल— पितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतोर्वंशस्य कर्त्ता?

लवः — भगवन् सहस्रदीधितिः।

रामः — कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्तौ?

विदूषकः — किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम्?

लवः — भ्रातरावावां सोदर्यौ।

रामः — समरूपः शरीरसन्निवेशः। वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्।

लवः — आवां यमलौ।

रामः — सम्प्रति युज्यते। किं नामधेयम्?

लवः — आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि (कुशं निर्दिश्य) आर्योऽपि

गुरुचरणवन्दनायाम् ..................................

कुशः — अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि।

रामः — अहो! उदात्तरम्यः समुदाचारः। किं नामधेयो भवतोर्गुरुः?

लवः — ननु भगवान् वाल्मीकिः।

रामः — केन सम्बन्धेन?

लवः — उपनयनोपदेशेन।

रामः — अहमत्रभवतोः जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।

लवः — न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।

रामः — अहो माहात्म्यम्।

कुशः — जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।

रामः — कथ्यताम्।

कुशः — निरनुक्रोशो नाम....

रामः — वयस्यअपूर्वं खलु नामधेयम्।

विदूषकः — (विचिन्त्य) एवं तावत् पृच्छामि निरनुक्रोश इति क एवं भणति?

कुशः — अम्बा।

विदूषकः — किं कुपिता एवं भणतिउत प्रकृतिस्था?

कुशः — यघावयोर्बालभावजनितं कञ्चिदविनयं पश्यति तदा एवम् अधिक्षिपति— निरनुक्रोशस्य पुत्रौमा चापलम् इति।

विदूषकः — एतयोर्यदि पितुर्निरनुक्रोश इति नामधेयम् एतयोर्जननी तेनावमानिता निर्वासिता एतेन वचनेन दारकौ निर्भर्त्सयति।

रामः — (स्वगतम्) धिङ् मामेवंभूतम्। सा तपस्विनी मत्कृतेनापराधेन स्वापत्यमेवं मन्युगभर्रक्षरैर्निर्भर्त्सयति।

(सवाष्पमवलोकयति)

रामः — अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च। (विदूषकमवलोक्य जनान्तिकम्) कुतूहलेनाविष्टो मातरमनयोर्नामतो वेदितुमिच्छामि। न युक्तं च स्त्रीगतमनुयोक्तुम्विशेषतस्तपोवने। तत् कोऽत्राभ्युपायः?

विदूषकः — (जनान्तिकम्) अहं पुनः पृच्छामि। (प्रकाशम्) किं नामधेया युवयोर्जननी?

लवः — तस्याः द्वे नामनी।

विदूषकः — कथमिव?

लवः — तपोवनवासिनो देवीति नाम्नाह्वयन्तिभगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति।

रामः — अपि च इतस्तावद् वयस्य!

मुहूर्त्तमात्रम्।

विदूषकः — (उपसृत्य) आज्ञापयतु भवान्।

रामः — अपि कुमारयोरनयोरस्माकं च सर्वथा समरूपः कुटुम्बवृत्तान्तः?

(नेपथ्ये)

इयती वेला सञ्जाता रामायणगानस्य नियोगः किमर्थं न विधीयते?

उभौ — राजन्! उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।

रामः — मयापि सम्माननीय एव मुनिनियोगः। तथाहि— 

भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर्

गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्।

कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,

पुनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः।।

वयस्य! अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारःतदहं सुहृज्जनसाधारणं श्रोतुमिच्छामि। सन्निधीयन्तां सभासदःप्रेष्यतामस्मदन्तिकं सौमित्रिःअहमप्येतयोश्चिरासनपरिखेदं विहरणं कृत्वा अपनयामि।

(इति निष्क्रान्ताः सर्वे)


अनुवादम्-

(राम सिंहासन पर स्थित हैं। फिर विदूषक के द्वारा दिखाए गए मार्ग पर तापसी कुश और लव प्रवेश करते हैं।)

विदूषक-        यहाँ से आर्य यहाँ से।

कुश-लव-       (राम के पास जाकर और प्रणाम करके) क्या महाराज कुश हैं?

राम-             तुम्हारे दर्शन से कुशल के समान हैं।

                   क्या हम यहाँ आपके के कुशल प्रश्न के पात्र (ही) हैं? अतिथिजन के योग्य गले लगने का नहीं?

                   (आलिंगन करके) ह्रदयग्राही स्पर्श (है)।

                   (आधे आसन पर बैठाते हैं।)

राम-             चरित्रलोप के लिए व्यवधान (रुकावट) ना हो। इसलिए गोदी में बैठिए, सिंहासन बाधित है।

(गोदी में बैठाते हैं)

कुश-लव-       (अनिच्छा से नाक करते हैं) अत्यधिक कुशलता ना करें।

राम-             अतिशानीलनता से बस करो।

गुणी महान् लोगों के लिए भी छोटी उम्र के कारण बालक लालनीय होता है। चन्द्रमा बालभाव के कारण ही शिवजी के मस्तक पर केतकी से निर्मित चूड़ा की भाँति शोभित होता है।

राम-             आप दोनों के सौन्दर्य को देखने से उत्पन्न कौतुहल से यह पूछता हूँ- क्षत्रियकुल के पितामह सूर्य अथवा चन्द्र अथवा आपके वंश का कर्ता कौन है?

लव-             भगवान् सूर्य

राम-             कैसे हमारे कुल में उत्पन्न हुए?

विदूषक-        क्या दोनों का उत्तर भी एक ही है?

लव-             हम दोनों सगे भाई हैं।

राम-             शरीर की बनावट भी समान है। आयु का तो कुछ अंतर नहीं है।

लव-             हम दोनों जुड़वाँ हैं।

राम-             अब ठीक है। क्या नाम हैं (तुम्हारे) ?

लव-             आर्य की वंदना से लव ऐसा स्वयं को सुनाता हूँ

                   (कुश को निर्देश करके) गुरुचरण वन्दना में...।

कुश-             मैं भी कुश इस प्रकार स्वयं को सुनाता हूँ।

राम-             अहो! अत्यन्त रमणीय शिष्टाचार। आपके गुरु का क्या नाम है?

लव-             निश्चय ही भगवान् वाल्मीकि।

राम-             किस संबंध से?

लव-             उपनयन की दीक्षा  के कारण

राम-             मैं आपके पिता का नाम जानना चाहता हूँ।

लव-             उनका (नाम) नहीं जानता हूँ। इस तपोवन में उनका कोई नहीं व्यवहार में नहीं लेता है।

राम-             अहो महानता।

कुश-             मैं उनका नाम जानता हूँ।

राम-             कहो।

कुश-             निर्दयी नाम (है)!

राम-             मित्र, निश्चय ही अनोखा नाम है।

विदूषक-        (सोचकर) ऐसा (है) तो पूछता हूँ “निर्दयी” इस प्रकार कौन कहता है?

कुश-             माता।

विदूषक-        क्या क्रोधित होकर ऐसा कहती हैं अथवा सामान्य रूप से?

कुश-             यदि हम दोनों के बाल स्वभाव से कुछ अविनय दिखती है तो “निर्दयी” के पुत्रों, चंचलता मत करो ऐसा कहकर डांटती हैं।

विदूषक-        यदि इन दोनों के पिता नाम “निर्दयी” है तो इन दोनों की माता उसके (पिता) द्वारा अपमानित हो निर्वासित हुई है अतः ऐसा करकर दोनों को धमकाती है।

राम-             (अपने आप में) इस प्रकार मुझे धिक्कार है।

                   व तपस्विनी मेरे किए गए अपराध से अपनी सन्तान को ऐसे क्रोध से भरे शब्दों से धमकाती है। (अश्रुपूर्ण नेत्रों से देखते हैं)

राम-             यह प्रास बहुत लम्बा और कठोर है। (विदूषक को देखकर संकेत से)

                   कौतुहलवश इनकी माता का नाम जानना चाहता हूँ स्त्रियों के लिए उचित नहीं, विशेषकर तपोवन में। तो यहाँ क्या उपाय है?

विदूषक-        (संकेत से) फिर मैं पूछता हूँ (सामने आकर) तुम दोनों की माता का नाम क्या है?

लव-             उनके दो नाम हैं।

विदूषक-        कैसे?

लव-             तपोवनवासी देवी इस नाम  से पुकारते हैं, भगवान् वाल्मीकि “वधु”।

राम-             मित्र! इधर से भी। क्षणभर।

विदूषक-        (पास जाकर) आज्ञा दें।

राम-             क्या इन दोनों कुमारों का और हमारे परिवार का वृत्तान्त (घटना) सर्वथा एक सा ही है?

                   (नेपथ्य में)

                   इतना समय हो गया, रामायण गान का कार्य किसलिए नहीं किया गया?

दोनों-           राजन्! गुरु का दूत हमें जल्दी कर रहा है।

राम-             मेरे द्वारा भी मुनि का कार्य सम्माननीय है। क्योंकि-

                   आप दोनों (लव-कुश) गाने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि (वाल्मीकि) कवि हैं, धरती पर प्रथम बार अवतरित स्फुट वाणी का यह संदर्भ (काव्य) है, और यह प्रशंसनीय तथा कमलनाभी विष्णु से संबंध हैं। वह और यह पारिवारिक जन निश्चय ही श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करने वाले हैं।

                   मित्र! मनुष्यों का सरस्वती का अवतार यह अपूर्व है, तो मैं मित्र और जनसाधारण को सुनना चाहता हूँ।

                   सभासह समीप आओ, लक्ष्मण को हमारे पास भेज दो। मैं भी इन दोनों का चिरासन का दुःख दूर करके लाता हूँ।

(सभी चले जाते हैं।)


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